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kabir das ki jivani in hindi

इतना तो स्पष्ट है कि कबीर का जन्म 1415 संत 1481 के पूर्व भी हुए होंगे अतः यह कहा जा सकता है कबीर का जन्म सन तेरहवी शताब्दी के अंत या 14वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर सन 1481 के मध्य में होना चाहिए |कबीर के संबंध में जन्म पर पहले विचार किया जा चुका है उनमें कोई भी कबीर की जन्म तिथि का उल्लेख नहीं करते, केवल कबीर चरित्र बौद्ध में कबीर का जन्म 1455 विक्रम जेठ सुदी पूर्णिमा सोमवार को स्पष्ट लिखा है |धार्मिक काल के काव्य में एक विशेषता रही है कि कवियों ने अपने भक्ति के उन्मेष में आत्मविश्वास की अनेक पंक्तियां लिखी है ऐसी पंक्तियां उनके जीवन-वृत्त पर थोड़ा-बहुत प्रकाश अवश्य पड़ गया है जीवन वृत्त किए बातें स्वयं कभी द्वारा लिखी जाने का अत्यंत प्रमाणिक होती है और उनके विषय मैं किसी प्रकार का संदेह नहीं रह जाता |
Sant Kabir Das: A Mystic Poetकबीर दास का बचपन:
कबीर दास का जन्म एक मुसलमान परिवार में हुआ था कबीर की माता स्वयं कहती है कि हमारे कुल में किसने राम का नाम लिया है ? और जब से इस निपूते कबीर ने जप की माला हाथ में ली है तब से किसी प्रकार भी सुख से भेंट नहीं हो सकी | इसका जीवन प्रतिदिन ‘गागरी’ लाकर घर लीपते ही व्यतीत हुआ | इसी कारण कबीर की माता उन्हें धार्मिक विश्वासों से किसी भी प्रकार संतुष्ट नहीं थी |कबीर की माता एकांत में रोया करती थी कबीर ने जब तनना-बनना सब छोड़ दिया तब यह बच्चे बेचारे किस प्रकार जीवित रह सकेंगे ? किंतु कबीर को अटल विश्वास था कि रघुराई ही हम सब का दाता है अतः उसे इन बच्चो की भी खबर है |sant kabir das a mystic poet.
- Sant Kabir Das: A Mystic Poet कबीर दास की जवानी:
कुछ दिन बाद कबीर के माता का देहांत हो गया और इससे कबीर पूर्ण रूपेश निश्चित हो गए क्योंकि अब उन्हें सत्संग में अपना समय व्यतीत करने से रोकने वाला कोई नहीं था वह अपनी भक्ति भावना में इतने तन्मय थे कि उन्हें दगली (रुई की अंगरखी ) पहनने का ना तो ध्यान था और नहीं ठण्ड लगने की चिंता महसूस होती थी कबीर के पिता एक बड़े गोसाई थे, उनके प्रति कबीर की बहुत श्रध्दा थी वह हमेशा कबीर के दुखी होने पर उन्हें सांत्वना भी दिया करते थे | कबीर का जन्म मगर में हुआ था | बाद में और काशी आ गए थे |kabir das ki jivani in hindi उन्होंने अपने बाल्यकाल के 12 वर्ष तथा युवा काल के 20 वर्ष बिना सत्संग के व्यतीत कर दिए थे | जाति से वह जुलाहे थे और सभी कोई उनकी जाति का उपहास करता था | पहले तो नित्य प्रति अपने घर पर ही ताना तनते थे फिर उन्होंने तनना-बुनना छोड़कर और अपने करघे (चरखा ) को तोड़कर अपने शरीर पर हरि का नाम लिख लिया और वे साधु सत्संग करने लगे |कबीर की संभवत दो स्त्रियां थी पहले कुरूप थी उसकी जाति का कोई पता नहीं था और उसमें कोई ग्राहस्थ्य लक्षण नहीं थे दूसरी सुंदर थी अच्छी जाति की थी तथा अच्छे लक्षणों से संपन्न थी पहली स्त्री का नाम था लोई और दूसरी स्त्री का नाम था धनिया जिसे लोग राम जानिए भी कहते थे |संभवत यह वैश्या रही हो किंतु कबीर की दृष्टि में वैश्या किसी भांति हीन न समझी गई हो |साधुओं के प्रति कबीर के भक्ति बढ़ने पर संभवत लोई को भी कष्ट होने लगा हो जैसे कबीर पहले की माता को कष्ट होता था क्योंकि कबीर ने अपने घर का सारा भोजन साधु संन्यासियों को बांट देते थे घर के लोगों ने चने चबाकर ही अपना पेट भरना पड़ता था साधू- संन्यासियों को तो कबीर घर की खाट दे दिया करते थे और खुद अपने परिजनों के साथ जमीन पर सोते थे |
कबीर के संतान भी थी एक पुत्र एक पुत्री संत संतति होने के कारण उन्हें प्राय कष्ट रहता था | पुत्र का नाम कमाल था जो कबीर के सुख का कारण नहीं था | वह सगुणोंपासकों की श्रेणी में सम्मिलित हो गया था वह इसलिए कबीर ने उसे अपना वंश विनाशक समझ रखा था |
कबीर का गुरु में अटल विश्वास था उन्होंने गुरु की वंदना अनेक प्रकार से की है तो फिर उन्होंने अपने गुरु के नाम का उल्लेख नहीं किया है |sant kabir das a mystic poet कबीर दास की पूरी जीवनी
कबीर दास के गुरु:
ज्ञात होता है कि यह गुरु रामानंद ही थे अपने गुरु की सेवा से ही उन्होंने भक्ति अर्जित की थी गुरु की प्राप्ति को ईश्वर की कृपा के फल स्वरुप ही समझते थे
कबीर पुस्तक ज्ञान में विश्वास नहीं रखते थे वह किसी से वाद-विवाद भी नहीं करना जानते थे | आत्म -चिंतन और हरि-स्मरण यही उनकी भक्ति के साधन थे | मुसलमान के कारण में अनेक बार हज के लिए भी गए लेकिन गोमती नदी के किनारे पीतांबर पीर की सेवा में जाना ही अपनी हज समझते थे | ये पीतांबर पीर बड़े सुंदर कंठ से गान किया करते थे और कबीर वहां बैठकर उन्हें बड़े प्रेम से सुना करते थे |
कबीर के समय बनारस के धार्मिक परिस्थितियों में बड़ी विषमता थी मुंडिया लोग बड़े आडंबर रचा करते थे बनारस के बहुत से ठग हरि के संत बन बन कर साढ़े तीन गज की धोती पहन कर गले में जपमाला डालकर हाथ में लोटे लेकर घुमा करते थे कबीर इन सब के कर्मकांड और आडंबरों की बहुत कडी आलोचना किया करते थे
अपने निर्भीक विचारों के कारण कबीर को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा | उन पर अनेक अत्याचार हुए |वह अत्याचार सिकंदर लोदी द्वारा किए गए ज्ञात होते हैं | उसने कबीर के भुजाओं को बांधकर हाथी के सामने डाल दिया किंतु कबीर नहीं मारे जा सके |बाद में उन्हें जंजीरों से बांधकर गंगा में डूबाने का प्रयत्न किया गया किंतु वह नहीं डूबे |
कबीर अपने विश्वासों में अत्यंत दृढ और विचारों में अटल थे | हरि स्मरण में उनका पूर्ण विश्वास था |वह राम भक्ति का अतिरिक्त संसार की सब बातों को निसार समझते थे | पंडित और मुल्लाओ के आदेशों पर इन्होंने अनु मात्रा भी ध्यान नहीं दिया |वे जन्मान्तरवाद में विश्वास रखते थे उन्हें अपने भजन में इतना विश्वास था कि मुक्ति देने वाली काशी में न मरकर मगहर में मरे | जहां मरने पर लोकोक्ति के अनुसार गर्दभ योनी में पुनः जन्म लेना पड़ता है | वह गोविंद के भजन में मनुष्य जीवन की सार्थकता समझते थे किंतु वे भूखे रहकर भक्ति नहीं करना चाहते थे | जीवन के सुविधा का भी उन्हें ध्यान था | वह अपने जीवन के लिए प्रतिदिन इतना भोजन चाहते थे रहता थोड़ा नमक पावर की आधा सिर दर्द संतुष्ट हो सकते थे वह एक चारपाई एक तकिया एक हुई से भरा हुआ दोहरा कपड़ा और ऊपर एक कंबल भी चाहते थे वह कभी-कभी अपने अनुचित कर्मों के लिए उन्हे पश्चाताप और आतंकवादी भी होती थी उन्हें पूर्व भक्तों में बहुत अधिक श्रद्धा थी इन भक्तों में जयदेव और नामदेव उल्लेखनीय कबीर को लंबी आयु मिली उन्होंने अपनी वृद्धावस्था का भी वर्णन किया है और अपनी निर्बलता एवं शरीर किसका काव्य उल्लेख किया है अंत में समस्त जीवन से पूरी बनारस में तपस्या की भांति व्यतीत करने पर वह अपनी मृत्यु के समय मगर के निवासी हैkabir das ki jivani in hindi कबीर दास की पूरी जीवनी
कबीर दास के जीवन वृत्त की आलोचना:
कबीर ने अपने व्यक्तिगत निर्देशों में कोई तिथि या संवत का उल्लेख नहीं किया है | अतः उनके जीवन अथवा निधन काल के संबध में कुछ कह नहीं सकते | उनका जन्म ऐसे जुलाहा कुल में हुआ था जिन में उनके संत जीवन के लिए विशेष सुविधाए थी | कबीर ने अपने पिता को एक बड़ा गोसाई कहा है । बनारस और उसके आसपास उस समय के गोसाई दसनामी भेद से अपनी उपासना में कही शिव और कहीं विष्णु के भक्त होते थे | कबीर के पिता ऐसी जुलाहा जाति में थे जिन्हें मुसलमानी संस्कारों के साथ के साथ शिवोपासक योगियो के भी संस्कार थे और यह किसी शिवोपासक संप्रदाय में दीक्षित होने के कारण गोसाई कहलाते थे ।
उस समय राम नाम पंथ का प्रभाव इन योगियो पर विशेष रूप से था । जिससे वह शरीर-साधन की परंपरा में विश्वास रखते थे | कबीर ने अपने पिता का निर्देश करते हुए अभी स्पष्ट रूप से कहा है कि मैं उस पिता की बाली जाता हूं जिसे मैं उत्पन्न हुआ हूं उन्होंने पांच इंद्रियों से मेरा साथ छुड़ा दिया है अब मैं पांच इंद्रियों के बिष को मार कर पैरों के नीचे दबा दिया हैं अतः यह स्पष्ट है यह कबीर के पिता जुलाहो की जाति में होकर भी योगियो के आचारों में विश्वास रखते थे | कबीर जिस जुलाहा वंश में पालित हुए थे वह इसी प्रकार के नाथ मतावलंबी गृहस्थ योगियों का मुसलमानी रूप था|योगो की परंपरा में होने कारण कबीर के कुल राम नाम केलिए विशेष शारदा न होगी इसलिए जब रामानंद के प्रभाव से कबीर ने राम ने स्वीकार किये होंगे तो उनकी माता को दुःख होना स्वाभाविक था |
कबीर के जीवन के किवदंती
कबीर के जन्म के विषय में जो किवदंती है कि वह विधवा ब्रहाणी के पुत्र थे और उसे विधवा बड़वानी को लोक लज्जा की रक्षा के लिए उन्हें लहरतारा तालाब के समीप फेंक दिया था और इस अवस्था में उन्हें नीरू और नीमा जुलाहा दंपति ने उठा लिया कोई विशेष महत्व नहीं रखती हमारे सामने इस प्रकार का इतिहासिक प्रमाण नहीं है | कबीर का जन्म स्थान अभी तक काशी माना जाता रहा है और इस संबंध में प्रज्ञा एक पंक्तियां उद्धृत की जाती है काशी में हम प्रकट भये हैं किंतु यह पंक्तियां ना तो संत कबीर में है और ना और ना किसी प्रमाणिक पोथी में ही पाई जाती है संत कबीर में कबीर की एक पंक्ति ऐसी है जिसे ज्ञात होता है कि मगहर में ही उत्पन्न हुए थे पहले दर्शन मगहर पाइयो फुनि काशी बसे आई | मृत्यु के समय उनका मगहर लौट जाना मनुष्य के उसे स्वभाव की प्रेरणा का प्रतीक हो सकता है जिसे वह अपनी जन्मभूमि या उनके समीप ही आकर मरना चाहता है इससे साबित होता है की उनका जन्म मगहर में हुआ होगा |
कबीर के पारिवारिक जीवन के संबंध में मतभेद कबीरपंथी साधुओं का कथन एक कि लोई उनके शिष्या मात्र थी स्त्री नहीं |वह एक बनखंडी बैरागी की पोष्य पुत्री थी जिसे उसने लोई (ऊनी चादर ) में लिपटा हुआ पाया था | कबीर के भक्ति और निस्पृह भावना देखकर वह उनके साथ रहने लगी थी |
(श्रोत:- बीजक)
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